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लेखनी कहानी -01-Aug-2023 वो हमसफ़र था, एपिसोड 7



मारथा, अशोक जी के छोटे भाई यश के कमरे की और जा रही थी, ताकि उन्हें उठा दे और नाश्ते का भी पूछ ले, कि क्या खाना पसंद करेंगे, लेकिन कमरे से आ रही कुछ आवाज़ो ने उसका ध्यान अपनी और खींच लिया, दरवाज़ा जो कि थोड़ा सा खुला हुआ था,क्यूंकि यश थोड़ी देर पहले बाहर आया था और अंदर हो रही बातों की साफ आवाज़ आ रही थी।



"तुम अभी तक, शालू यही बैठी हो,,, तुम्हे भाई साहब का पता तो है न, कितनी बार कहा है कि सब कुछ मारथा के ऊपर मत छोड़ो, तुम्हारी भी कुछ जिम्मेदारी है, इस घर के लिए,, कम से कम सुबह का नाश्ता तो तुम देख ही सकती हो" यश ने कहा जो तौलिया बांधे हुए बाथरूम से बाहर खड़ा हुआ था।


"मुझे मत बताइये इस घर कि जिम्मेदारियों को निभाने का तरीका, मुझे मालूम है,,, आपसे तो एक काम भी नही हो रहा है,,, चले है मुझे जिम्मेदारियां बताने,,, आप करो अपने भाई की गुलामी,, मुझे और मेरे बेटे को इन सब से दूर रखो " शालू ने कहा।


"तुम्हारे अंदर आखिर इतना जहर क्यूँ भरा है, शालू? भाई साहब तो तुमसे कुछ कहते भी नही है,,, भाभी ने भी कभी तुम्हे देवरानी नही समझा बल्कि अपनी छोटी बहन समझा,,, और तुम हो कि न जाने कौन से जन्म का बेर लिए बैठी हो,,," यश ने कहा।

"सब कुछ अपने नाम किए बैठे है, और कुछ दिन बाद अपने बेटे को काम पर लगा देंगे,,, हम लोगो के हाथ क्या आएगा, सिवाय उनकी गुलामी के,,, पहले हम दोनों ने कि आगे हमारा बेटा और उसके बच्चें करते रहेंगे,,, आपका क्या है,,, सब कुछ तो आपके बड़े भाई और भतीजे का है,,, हमारा क्या है?" शालू ने कहा गुस्से से,


"तो बस यही वजह है,,, तुम्हारे लिए रिश्ते कोई मायने नही रखते है,,, इतने सालो में तुमने बस यही सीखा,,, क्या नही है तुम्हारे पास, घर है गाड़ी है पैसा है,,, और क्या चाहिए तुम्हे " यश ने कहा।


"ये सब किसका है,,? मेरा तो नही है,, न ही मेरे बेटे का,,, ज़ब उसके बाप का ही नही है तो बेटे का कैसे होगा,,, किसी दुसरे की चीज को अपना कहना अच्छी बात नही है,,, ये घर भी तुम्हारे भाई का है,, और जिस दफ्तर में तुम जाते हो वो भी तुम्हारे भाई का ही है,,, हमारे क्या है,,, हम तो इतने सालो से यूं ही रह रहे है इस घर में,,, आप गधो की तरह मेहनत कर रहे है,,, कंपनी को कांटेरक्ट दिला रहे है,,, उसे ऊँचाई पर ले जा रहे है,,,, मिलेगा किसको सब,,, अभीर रायचंद को,,, अशोक रायचंद के इकलौते बेटे को,,,, क्यूंकि सब कुछ उसी के बाप का तो है,,, चाचा तो नौकर है उस कंपनी में " शालू ने कहा।


"खामोश हो जाओ,,, इससे पहले मेरा हाथ उठ जाए,,,, मैं कहता हूँ खामोश हो जाओ " यश ने कहा।


"इतने सालो से खामोश ही तो हूँ,,, लेकिन अब नही,,, अब मेरे बेटे का सवाल है,,, मैं उसके भविष्य का नही सोचूंगी तो कौन सोचेगा,,, मैं आपको बता रही हूँ,,, अपने भाई से बात कीजिये और वो जो बंद फैक्ट्री है उसे अपने नाम करा लीजिये, ताकि हमारे पास भी तो कुछ हो " शालू ने कहा।


"तुम सब कुछ जानते हुए भी उस फैक्ट्री की बात क्यूँ करती हो, उस फैक्ट्री में सिर्फ मेरा हिस्सा नही है, भाई साहब का भी हिस्सा है,,, और जो हिस्सा मेरा था उसे मैंने बहुत पहले बेच कर सारा पैसा गवा दिया था,,,और ये जो कंपनी है ये पूरी भाई साहब ने अपनी मेहनत से ख़डी की है,, ऐसा नही है कि उन्हें मेरी मेहनत नजर नही आती है,,, मेरा भी इस कंपनी में शेयर है,,, जिसके बदौलत मेरा बेटा इस कंपनी में एक बॉस कि हैसियत से काम करेगा न कि नौकर की हैसियत से " यश ने कहा।


"वाह,,, साहब वाह,,, भाई तो बहुत देखे लेकिन आप जैसा नही देखा,,, आपने फैक्ट्री का जो हिस्सा जिसे बेचा था वो कोई और नही आपके भाई साहब ही थे,,, जिस समय उस हिस्से को बेचा था उस समय उसका इतना भाव नही था,,, आपके भाई ने आपको चूना लगाया था,,, सस्ते दामों में खरीद कर खुद मालिक बन बैठे


और कोनसे शेयर की बात कर रहे है आप,,1 परसेंट के हिस्से वाले की कोई औकात नही होती है इतने बड़े कारोबार में, दूध में गिरी मक्खी की तरह कब निकाल दिया जाए कुछ नही कह सकते " शालू ने कहा।


"हे! भगवान मुझे सब्र दे,, वरना मेरे हाथ से किसी का कत्ल न हो जाए,,, इस औरत को कौन समझाये,,, जिस तरह का कांड हम दोनों ने किया था उसके बाद भाई साहब ने हमें घर में जगह दे दी हे वही बहुत हे,,,, और ये चाहती हे कि मैं उनसे बटवारे की बात करू, याद नही किस तरह तुम और मैं इस चौखट पर भिखारी बने खडे थे,, अभिनव तुम्हारी कोख मैं था और मैं उसकी परवरिश के लायक भी नही था, क्यूंकि सब कुछ तो बर्बाद कर दिया था मैंने, अपने ही हाथों, तुमसे प्यार जो कर बैठा था तुम्हारे खातिर ही तो सब कुछ छोड़ आया था, उन सब के बावज़ूद भाई साहब ने हमें घर में जगह दी भाभी ने तुम्हे देवरानी नही बहन बना कर रखा और तुम देखो उनके प्यार और स्नेह का सिला किस तरह दे रही हो " यश ने कहा।


"कोई एहसान नही किया था उन्होंने, छोटे भाई थे आप उनके, बड़े भाई होने के नाते उनका फर्ज़ था और गलतियां किससे नही होती हे, और रही बात आपकी भाभी माँ की तो उनकी खिदमत कर चुकी हूँ मैं,,, गुलामो की तरह उनके आगे पीछे फिरी हूँ, अपना बच्चा छोड़ उनके साहब जादे को खिलाया पिलाया हे,,, और वो आज मुझे नजर भर कर देखता भी नही हे,,, मेरे बेटे के बजाये पता नही किससे दोस्ती यारी करे बैठा हे,,, आपके लिए होंगे आपके भाई राम मेरे लिए नही हे,,," शालू ने कहा।


"मुझे कुछ नही कहना, मैं नीचे जा रहा हूँ,,, मन करे तो आ जाना नाश्ते की मेज पर वरना यही मंगा लेना " यश ने कहा और दरवाज़े की और बड़ गया


दरवाज़े की और आता देखा यश साहब को मारथा खुद को संभाल पाती उससे पहले ही दरवाज़ा खुल गया, सामने अपने यश साहब को देख मारथा की घिग्गी बन गयी, उसकी सास आधी हलक में तो आधी मूंह में रह गयी


"मारथा, तुम,,, तुम यहाँ क्या कर रही हो,,, कब से ख़डी हो यहाँ?" यश ने कहा।


मारथा का नाम सुन, शालू भी अपने बिस्तर से उठ ख़डी हुयी और बाहर दरवाज़े की तरफ गयी और मारथा को देख बोली " तुम,,, तुम यहाँ क्या कर रही थी? हमारी बाते सुन रही थी क्या? "


"म,,, म,,,,मैं,,, मैं तो बस अभी ही आयी थी साहब,,, व,,, व,,,, वो पूछना,,, नही बताना था कि नाश्ता तैयार हे,,, कुछ और बनवाना हो तो बता दीजिये " मारथा ने हकलाते हुए कहा।


" अभी आयी थी, तो दरवाज़ा क्यूँ नही खट खटाया,, और इतना घबरा क्यूँ रही हो ?" शालू ने कहा।

मारथा ने सामने खडे यश साहब की तरफ देखा, उसके होंठ कांप रहे थे,, वो काँपते होठों से बोली " म,,, म,,,, मेडम,, जैसे ही साहब ने दरवाज़ा खोला मैं तब ही आयी थी, शायद अचानक इस तरह साहब को सामने देख घबरा गयी,,, मुझे लगा सो रहे होंगे,,, लेकिन अचानक सामने देख थोड़ा घबरा गयी "


"सच कह रही हो न,,, तुम अभी ही आयी थी,,, कुछ सुना तो नही तुमने " शालू ने पूछा


यश ने शालू की तरफ देखा थोड़ा घूरते हुए

"किस बारे में मैडम,,, कुछ हुआ हे क्या? आप सब ठीक तो हे"मारथा ने कहा

"नही कुछ नही,,, तुम जाओ,,, और हाँ भाई साहब से कहना मैं आ रहा हूँ,,, देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ " यश ने कहा।


"ठीक हे, साहब" मारथा ने कहा और वहां से जाने लगी लेकिन तब ही पीछे मुड़ी

दोनों उसे इस तरह पीछे मुड़ता देखा घबराते हुए बोले " क्या हुआ? रुक क्यूँ गयी? "

"कुछ नही साहब, पूछना था कुछ और तो नही लेंगे, नाश्ते में वही अंडा ब्रेड खाएंगे या कुछ और बनवा दू,,, आपके लिए मैडम " मारथा ने पूछा


"नही,, नही,,, और किसी की जरूरत नही,,, मुझे दफ्तर जल्दी पहुंचना हे,,, आप जाकर टेबल लगवा दो मैं अभी आता हूँ " यश ने कहा


"और आप मैडम,, आप नही आ रही हे," मारथा ने पूछा

शालू ने मारथा की तरफ देखा और थोड़ा घबराते हुए बोलने की कोशिश की तब ही यश बोल पड़ा " नही,, मेडम का सर दर्द कर रहा है,,, उनका नाश्ता कमरे में ले आना बाद में अभी जाओ "


मारथा, हाँ में सर हिलाकर वहां से चली जाती हे


यश, जल्दी से दरवाज़ा बंद करके अपने कमरे में जाता और कहता हे " क्या हमारी बाते मारथा ने सुनी होंगी? अगर ऐसा हे तो बहुत बुरा हे,,, मारथा भाई साहब को सब बता देगी की उनके बारे में हमारी सोच क्या हे "


"कुछ नही सुना होगा उसने " शालू ने कहा


"तुम्हे बहुत यकीन हे,, क्या सबूत हे कि उसने नही सुना होगा,,, उसके चहरे कि घबराहट नही देखी थी तुमने,, हे भगवाना मुझे हिम्मत दे " यश ने कहा


"थोड़ी सद्बुद्धि भी,,, मारथा डर गयी थी तुम्हे इस तरह कमरे से निकलता देख,,, वरना तो वो कई आवाज़े देती हे तब जाकर तुम कही उठते हो,,, आज अचानक तुम्हे देख डर गयी होगी "शालू ने कहा।


"ऐसा ही हो,,, मारथा ने कुछ न सुना हो,,, अगर भाई साहब को जाकर उसने बता दिया तो मैं अपनी ही नजरो में गिर जाऊंगा और वजह तुम होगी " यश ने कहा।


"मैं तो कहती हूँ बता ही दे, अगर सुन लिया हे, झूठा नाटक नही होता मुझसे और न ही जी हजूरी और गुलामी बस इस वजह से कि हम उनके टुकड़ो पर पल रहे हे,, लेकिन बस कुछ दिन और आपसे तो कुछ नही होगा लेकिन मेरा बेटा मुझे हक़ दिलवा कर रहेगा, मैंने भी धूप में बाल सफ़ेद नही किए हे, ज़ब घी सीधी ऊँगली से नही निकले तो ऊँगली टेड़ी करना पडती हे " शालू ने कहा।


"जो दिल में आये करो, अपने किए कि तुम खुद ज़िम्मेदार होगी "यश ने कहा और वहां से चला गया।


"देखेंगे,,, ये तो वक़्त बताएगा, नही अपने बेटे का हक़ निकाला तो मेरा नाम शालू नही " शालू ने कहा भोहे चढ़ाते हुए।



क्या, यश का शक सही साबित होगा? क्या मारथा अशोक साहब को बता देगी शालू की बातों के बारे में, उसकी अच्छाई का पर्दा उतार फेकेगी, जानने के लिए पढ़ते रहिये 

कहानिकार प्रतियोगिता हेतु 

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